सागर/ पड़रिया गौषाला में गौषाला संचालक लक्ष्मी स्व. सहायता समूह की महिलाओें ने घूरे के ढेर को आमदनी का साधन बनाने का नवाचार किया है। गौषाला में 130 से अधिक गौवंष है। प्रतिदिन कई क्वटंल गोबर निकलता है। इस गोबर को गौषाला के पिछवाडे़ में ढेर लगा दिया गया है। चूकि वर्षा काल में गोबर से उत्पादों का निर्माण बन्द हो जाता है। इसलिए ढेर धीरे-धीरे बढता गया। आमतौर पर ताजे गोबर में गर्मी होती है। गोबर को ठंडा होने में सामान्य ताप क्रम की अवस्था में भी 15 दिन लगते है। परन्तु लगातार चल रही वर्षा में इस गोबर की गर्मी को जल्द ही निकाल दिया। महिलाओं ने गोबर के इस बडें ढेर पर कदू, लोकी, गिलकी, के दाने वो दिये जल्द ही ये दाने अकुंरित होकर वेलों के रूप में इस विषाल ढेर पर छा गये । गोबर में प्रत्येंक पौधें को पर्याप्त आहार और नमी मिल रही थी। इसके कारण जबरदस्त फूल आना शुरू हो गये जल्द ही वेलों में फल लग गये बिना किसी देखभाल के बिना कोई खाद्य दवा डाले वेलों में फल देना शुरू कर दिया प्रति सप्ताह लगभग 1 क्वंटल सब्जी आना शुरू हो गई। समूह की अध्यक्ष श्रीमति मूला बाई अदिवासी ने बताया कि वे अपने समूह सदस्यो के साथ इस गौवंष की सेवा कर रही है। अनूप तिवारी जिला प्रबंधक ने बताया कि गौषाला में केंचुल खाद्य इकाई नेपियर ग्रास पषु आहार मे उपयोगी क्रेकटष लगा रखे है। अरविन्द ठाकुर के मार्गदर्षन में उन्होने गौषाला में गीष्म काल में जंगल से इक्काठे किये गये बेल स्वरस का निर्माण किया है।